ये कैसा विरोध है, सरकार का विपक्ष से या फिर विपक्ष का सरकार से कुछ समझ नहीं आ रहा है। अरे मैंने ये माना की राजनीति तुम्हारे कण-कण में बसी है लेकिन कहीं ऐसा न हो राजनीति का पैमाना ही बदल जाए। ये बात अलग है कि विपक्ष का काम ही है कि वह सरकार हर कार्य में नकारात्म सोच पैदा करनें लेकिन ये भी नहीं होना चाहिए कि देशहित में जो कार्य हो रहे हैं उसको एकदम से नकार दिया।
हम यह मान सकते हैं कि कोई जरूरी नहीं है कि विपक्ष सरकार की प्रत्येक नीतियों पर सहमत हो और होना भी नहीं चाहिए क्योंकि अगर विपक्ष ने अपना काम नहीं किया तो फिर सत्तापक्ष पर अंकुश कौन लगायेगा। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि सत्तापक्ष कुछ भी करें हम उसकी हौंसला अफजाई करने के अलावा उस पर दोषारोपण करते फिरें।
केंद्र सरकार के कुछ फैसले तारिफे-काबिल है लेकिन विपक्ष उसको गैरतांत्रिक तरीके से विरोध कर रही है। 2014 से भाजपा केंद्र की सत्ता पर काबिज है इन वर्षों में उसने कुछ ऐतिहासिक फैसले भी लिए हैं इससे हमें गुरेज नहीं करना चाहिए। भारत की इतिहास में जम्मू-कश्मीर एक बदनुमा दाग की तरह था। जबसे देश आजाद हुआ तब से कईयो प्रधानमंत्री आए और गए लेकिन किसी ने जम्मू-कश्मीर से धारा-370 और आर्टिकल 5 हटाने की जुर्रत तक नहीं दिखाई। बल्कि इसमें आग में और घी डालने का काम किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद ही कछ ऐसे फैसले लिए जिससे कि लगा देश अब तरक्की की तरफ बढ़ रहा है लेकिन वह उसे सतह पर नहीं ला पाये।
2014 लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे को लेकर लड़ी थी। लेकिन चुनाव जीतने के बाद भ्रष्टाचार की बात छोड़ दीजिए लेकिन महंगाई पर अंकुश लगाने पर मोदी सरकार पूरी तरह से नाकाम रही है। नोटबंदी को भाजपा तुरुप का एक्का मानने की कोशिश कर रही थी लेकिन उसके भी हवा की पोल खुल गई। देश की जनता जब लाइनों में खड़ी होकर नोट बदल रही थी उसी समय कुछ बड़े पूंजीपतियों के नम्बर दो के नोट का एक नम्बर किया जा रहा था। यह बात किसी से छिपी नहीं है कईयो ने बहती गंगा में हाथ धुले हैं। नोटबंदी तो हुई लेकिन इस नोटबंदी से किसको फायदा हुआ और किसी नुकसान यह जगजाहिर है।